Afim ki kheti kaise kare (अफीम की खेती कैसे करे)

अफीम की उन्नत खेती की विशेष तकनीक के बारे में जानकर आप भी अपनी अफीम की खेती में अधिक पैदावार हासिल  कर सकते हों…

नमस्कार किसान भाइयों, आपका mandibhavindia.com पर स्वागत हैं।  आज में आपको अफीम की खेती (afim ki kheti) से सम्बंधित जानकारी बताऊंगा।

अफीम के बारे में (About Afim):-

म.प्र निप्र । अफीम की खेती नीमच मन्दसौर रतलाम में केंद्रीय नारकोटिक्स द्वारा जारी पट्टे के आधार पर की जाती है।
अफीम में लगभग 42 से भी अधिक प्रकार के अल्केलॉइट पाये जाते हैं। जिनमे मुख्य रूप मॉरफीन, कोडीन, थीवेन, नारकोटिन तथा पेपेवरिन अधिक ही महत्वपूर्ण हैं। जिनका उपयोग विभिन्न प्रकार की दवाईयाँ बनाने में होता हैं। अफीम के दानों में लगभग 52% तेल होता हैं ।

अपने खेत पर फसल उत्पादन के लिए भी सरकार से स्वीकृति लेनी पड़ती है एवं उसकी उपज भी आप स्वयं नहीं रख सकते, अफीम की खेती से अन्य फसलों की तुलना में सर्वाधिक लाभ होता हैं, किन्तु यह नारकोटिक्स विभाग द्वारा प्रदान अनुज्ञा पत्र के अंतर्गत की जाती हैं तथा निर्धारित मात्रा से कम उत्पादन देने वाले कृषकों के अनुज्ञा पत्र निरस्त किये जा सकते हैं। अतः इसकी खेती बड़ी ही सावधानी पूर्वक करनी पड़ती हैं।

अफीम की उन्नत खेती के लिए कौनसी मिट्टी का चयन करना उचित रहेगा?(afim ki unnat kheti ke liye konsi mitti sabse badiya hai):-

अफीम की बुवाई के लिए चिकनी मिट्टी या चिकनी दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती हैं।

खाद एवं उर्वरक की सही मात्रा कितनी होनी चाहिए? (afim ki unnat kheti me khad ki matra kitni honi chaiye)

20 आरी क्षेत्र के लिए देशी खाद 2 टन अथवा 2 क्विंटल अरण्डी की खली बुवाई से पूर्व खेत में मिलावे। अफीम के लिए 24 किलों नत्रजन, फॉस्फोरस 8 किलो/आरी देवें।

1. बुवाई के समय 13 किलो 500 ग्राम यूरिया व 50 किलो सिंगल सुपर फॉस्फेट या 17 किलो 400 ग्राम, डी.ए.पी. व 6 किलो 300 ग्राम यूरिया।

2.फूल की डोडिया निकलते समय 13 किलो 300 ग्राम यूरिया सिंचाई के साथ।

अफीम के बीजों का सही से उपचार कैसे करे?(afim ki unnat kheti me afim ki bijo ka sahi se upchar kaise kare)

इस फसल में काली मस्सी एवं कोडिया बीमारी का प्रकोप पौधों की छोटी अवस्था से ही शुरू हो जाता हैं। इसके बचाव के लिए बीज को 10 ग्राम एप्रोन 35 एस.डी. मिलाकर बीज को उपचारित करने के बाद ही बोये।

अफीम की खेती में बीज की मात्रा  कितनी होनी चाइए(afim ki unnat kheti me bij ki matra kitni honi chaiye)

बीस आरी जमीन के लिए करीब 1 किलोग्राम से 1.25 किलोग्राम बीज पर्याप्त हैं।

अफीम की खेती में बुआई कैसे करे? (afim ki unnat kheti me buaai kaise kare)

समतल क्यारियां बनाये जो की अधिक लम्बी व कम चौड़ी हो, जैसे 5 मीटर लम्बी व 2-3 मीटर चौड़ी, इसके साथ ही सिंचाई के लिए धोरे बनावें। खेत में कुदाली से एक फिट (30 से.मी.) की दुरी पर कतारें बनाकर या हल से 30 से.मी. की दुरी पर 4″ (10से.मी.) गहरा, खाद उर कर कतारें बंद कर दे उसके बाद हाथ से उन कतारों में बीज डालें तथा हल्के हाथ से लकड़ी को कतारों पर फिर देवें ताकि बीज मिट्टी से हल्का सा ढक जाए।

अफीम की खेती में सिचाई कैसे करे?(afim ki unnat kheti me sichai kaise kare)

बुवाई के बाद पहली सिंचाई धीमी गति से करें ताकि बीजों के ऊपर अधिक मिट्टी नहीं ढक पाये। इसके लिए सिंचाई करते समय एक साथ 8-10 क्यारियों में पानी छोड़ दें। यदि 4-5 दिन बाद क्यारियों की ऊपरी सतह सुख कर कठोर हो जाए वे अंकुरण में बढ़ा हो तो एक हल्की सिंचाई करें। इसके बाद आवश्यकतानुसार 10-12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।

अफीम में कली, पुष्प तथा डोडे बनने की अवस्था पर सिंचाई करें। चीरा चालू होने से पहले भी एक सिंचाई करें। चीरा लगाने के समाप्त होने के पश्चात् भी एक हल्की सिंचाई करें जिससे बीज उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती हैं तथा बीज का आकार बड़ा बनता हैं। यदि तेज हवा चल रही हैं तो डोडे बनने के बाद सिंचाई करें।

अफीम की खेती में खरपतवार पर नियंत्रण कैंसे करे?(afim ki kheti me kharpatvar par niyantran kaise kare)

फसल को खरपतवार मुक्त रखें। निराई-गुड़ाई के बाद 30,45 एवं 60 दिन के आस-पास करनी चाहिए। निराई-गुड़ाई करते समय पौधे की छटाई इस तरह करें की पौधे से पौधे की दुरी 10 से.मी. रह जाए। खरपतवार नियंत्रण के लिए आइसोप्रोटुरॉन 0.125 किलो सक्रिय तत्व प्रति हैक्टेयर की दर से फसल की बुवाई के तीसरे दिन छिड़काव करना लाभदायक पाया गया हैं। बीस आरी क्षेत्र के लिए 25 ग्राम आइसोप्रोटुरॉन सक्रिय तत्व 100 लीटर पानी में घोलकर प्रयोग करें।

अफीम की खेती में फसल चक्र किस प्रकार का होना चाहिए? (afim ki unnat kheti me fasal chakra kis prakar ka hona chaiye)

अफीम से पहले खरीफ में उड़द, मुगफली व हरी खाद का फसल चक्र अपनाने से अधिक लाभ पाया जाता हैं। तीन वर्षों में एक बार खरीफ में मक्का की बुवाई करना भी लाभदायक पाया हैं। अफीम अश्वगंधा फसल चक्र में प्रथम वर्ष में अफीम व द्वितीय वर्ष में अश्वगंधा की फसल बुवाई करना चाहिए।

अफीम की खेती में डोडा चीरा और लुने का सही समय कौन-सा है?(Afim ki unnat kheti me doda chira or lune ka sahi samay konsa hai)

अफीम लेने का सही समय चीरा लगाने के दूसरे दिन सवेरे से जल्दी से जल्दी का हैं। डोडे को हाथ से दबाकर देखे। यदि डोडा चीरा लगाने लायक हो गया है। सामान्यतः फसल 100-110 दिन की होने पर चीरा लगाने का उपयुक्त समय होता हैं। चीरा लगाने का कार्य दोपहर बाद करें। बादल होने पर या तेज हवा चलने पर चीरे लगाने का कार्य बंद रखना चाहिए। डोडे पर चीरे तिरछे लगाये जिससे अधिकांश कोशिकाये कट जाने से अधिक मात्रा में दूध रिसता हैं, और डोडे से दूध टपकने की संभावना कम रहती हैं, अफीम के डोडो पर सामान्यतया 3-5 बार एक दिन छोड़कर दूसरे दिन चीरा लगावें।

अफीम में होने वाले प्रमुख रोग एवं कीट तथा उनका समाधान क्या है ?(Afim me hone wale pramukh rog or unka samadhan)

मृदुरोमिल आसिता (कोडिया एवं काली मस्सी का रोग):-

अफीम उगाने वाले सभी क्षेत्रों में दौनी मिल्ड्यू (काली मस्सी) से बहुत हानि होती हैं। रोग का प्रकोप पौध अवस्था से लेकर फल आने तक रहता हैं। मस्सी से पौधे की पत्तियों पर भूरे या काळा धब्बे बन जाते हैं। इस रोग से प्रभावित फसल की बढ़वार निचे की पत्तियों पर फैल जाते हैं।

इस रोग से प्रभावित फसल की बढ़वार कम हो जाती हैं। कोडिया रोग की रोकथाम के लिए बीजोपचार हेतु फफूंदनाशी दवा मेटालेक्सिल 35 एस.डी. (एप्रोन) 8 ग्राम प्रति किलो बीज दर से उपचारित करके ही बुवाई करें। इसके बाद फसल में रोग प्रकट होने पर फफूंदनाशी दवा मेंकोजेब 64%+मेटालेक्सिल 8% (रिडोमिल एम जेड-72 डब्ल्यू.पी.) घुलनशील चूर्ण का (0.2%) अर्थात 2 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में पहला छिड़काव रोग के लक्षण प्रकट होने पर दूसरा व तीसरा छिड़काव 15 दिन के अंतराल से दोहरावें।

छाछिया रोग:-

इस रोग को चूर्णिल आसिता या पाउडरी मिल्ड्यू भी कहते हैं। यह रोग इरिसीफी पोलिगोनाइ नामक फफूंद से होता हैं। रोग फफूंद के कोनिडिया से होता हैं। इस रोग के लक्षण पौधे के तना के निचले हिस्से पर दिखाई देते हैं। बाद में यह रोग धीरे-धीरे पत्तियों पर सफेदी के रूप में दिखाई देता हैं। बाद में सफेद धब्बे बन जाते हैं। धीरे-धीरे वह काले पड़ जाते हैं। इस रोग का प्रकोप तीव्र होने पर कभी-कभी सफेद चूर्ण डोडों पर भी दिखाई पड़ता हैं तथा पूरा पौधा सफेद चूर्ण से ढक जाता हैं।

इसकी रोकथाम के लिए फसल बुवाई के 70,85 एवं 105 दिनों पर टेब्यूकोनाजोल 1.5 मि.ली./लीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

विषाणु जनित (एफिड्स एवं सफेद मक्खी द्वारा) पीली पत्ती रोग (मोजेक) का प्रबंधन:-

रोग ग्रसित पौधों को उखाड़कर जलावें अथवा गहरे गड्डे में दबाएं। कीटनाशक दवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस. एल. का 0.3 मि.ली./लीटर पानी या डाइमिथिएट 30 ई.सी. 2 मि.ली./लीटर पानी में घोलकर पहला छिड़काव करें एवं दूसरा व तीसरा छिड़काव 10-12 दिन के अन्तराल से पुनः दोहरावें।

भूमिगत कीट दीमक एवं कटुआ इल्ली:-

इसके अंतर्गत वे कीट आते है जो भूमि में रहकर अफीम के पौधों की जड़ों को नुकसान पहुँचाते है। रोकथाम के लिए क्लोरोपायरीफास का छिड़काव करें। नीम की खल/500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाले

जड़ गलन रोग का समन्वित प्रबंधन:- 

फसल बुवाई से पहले नीम की खली की खाद 500 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से अथवा 80 किलो 20 आरी क्षेत्र में मिलावें। जैव फफूंदनाशी ट्राइकोड्रामा चूर्ण से 10 ग्राम प्रति किलो बीज के दर से बीज उपचार करें। अफीम की फसल के 35 एवं 60 दिनों के उपरान्त फफूँदनाशी दवाओं जैसे – हेक्जाकोनाजोल 5 ई. सी. (0.1%) 1 मि.ली. प्रति लीटर या मेंकोजेब 75% चूर्ण (0.3%) 4 ग्राम/लीटर की दर से पानी का घोल बनाकर फसल की जड़ों में ड्रेचिंग करें।

डोडे की लट:-

क्यूनालफॉस (25इ.सी.) 1.5 मी.ली. से 2.0 मि.ली. एक लीटर पानी में मिलावें। (0.04-0.05%) बिस आरी क्षेत्र के लिए 200-250 मि.ली. क्यूनालफॉस 125 लीटर पानी में मिलावें अथवा मोनोक्रोटोफॉस 1 मि.ली/लीटर पानी में मिलावें। जैव फफूंदनाशक 10 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर 200 की.ग्रा. पकी हुई गोबर की खाद में मिलाकर भूमि उपचार करें। बिस आरी के लिए 100-150 मि.ली. मोनोक्रोटोफॉस 100-150 लीटर पानी में मिलावें।

पाला:-

अफीम की फसल को पीला से बहुत ज्यादा नुकसान होता हैं। अतः फसल को निम्न प्रकार बचाया जाये पला पड़ने की संभावना हो या पाला पड़ गया हो तो तुरंत प्रारम्भ से सिंचाई करें। पाला पड़ने से पूर्व सिंचाई करने से पाले का असर कम होता हैं। फसल के चारों और धुँआ करने से पाले का असर कम होता हैं।

गंधक का तेजाब का 0.1% घोल अर्थात 120-150 मि.ली. गंधक का तेजाब 120-50 लीटर पानी में मिलाकर 20 आरी क्षेत्र में छिड़काव करें। उपरोक्त उपचार 15 दिन बाद दोहराये।

उपज:-

अफीम की वैज्ञानिक तरिके से खेती करने पर अफीम दूध उत्पादन लगभग 65-70 की.ग्रा. प्रति हैक्टेयर, बीज उत्पादन 10-12 क्विंटल प्रति हैक्टेयर, डोडा चुरा 9-10 क्विंटल एवं मॉरफीन की मात्रा 12-15% तक प्राप्त की जा सकती हैं।


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