गेहूं की उन्नत खेती कैसे करें ?
गेहूं की उन्नत खेती करने के लिए गेहूं की किस्मों के चुनाव , बुवाई की विधि , बीज दर ,सिंचाई प्रबन्धन , खरपतवार नियंत्रण, फसल संरक्षण मुख्य है
हमारे द्वारा बताई गई गेहूं के अधिक उत्पादन की विधि एक वैज्ञानिक तरीका है ।
तापमान कैसा हो?
गेहूं के बीज अंकुरण के लिए 20℃ से 25℃ तापमान उचित रहता है, गेहूं की बढ़वार के लिए 27℃ से अधिक तापमान होने पर विपरीत प्रभाव होने लग जाता है ओर सुचारू रूप से बढ़वार नही हो पाती ।
भूमि का चयन ?
गेहूं की बम्पर पैदावार के लिए बलुई दोमट मिट्टी से चिकनी दोमट समतल एवं जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि अधिक उपयुक्त है ।
मिट्टी पलटने वाले हल से पहली जुताई गर्मी में उत्तर से दक्षिण में करके खेत को खाली छोड़ दें ।
वर्षा के दिनों में दो या तीन बार आवश्यकतानुसार खेत की जुताई करते रहें जिससे खेत में खरपतवार न जम पाए ।
किस्मों के चयन ?
सिंचित अवस्था में समय से बुवाई एच डी-2967 , एच डी – 4713 , एच डी-2851 , एच डी – 2894 , एच डी -2687 , डी बी डब्ल्यू -17 , पी बी डब्ल्यू-550 , पी बी डब्ल्यू-502 , डब्ल्यू एच-542 , डब्ल्यू एच-896 , ओर यू पी- 2338 आदि प्रमुख है , इन किस्मों के बुवाई का मुख्य समय 10 नवम्बर से 25 नवम्बर माना जाता है ।
सिंचित अवस्था में देरी से बुवाई की मुख्य किस्में एच डी-2985 , डब्ल्यू आर-544 , राज-3765, पी बी डब्ल्यू 373 , डी बी डब्ल्यू-16 ,डब्ल्यू एच-1021 , पी बी डब्ल्यू-590 , यू पी – 2425 आदि प्रमुख है , इनका बुवाई का उपयुक्त समय 25 नवम्बर से 25 दिसम्बर उपयुक्त माना जाता है ।
असिंचित अवस्था में समय से बुवाई एच डी-2888 , पी बी डब्ल्यू -396 , पी बी डब्ल्यू- 299 , डब्ल्यू एच-533 , पी बी डब्ल्यू-175 ओर कुन्दन आदि है ।
लवणीय मिट्टी के लिए के आर एल – 1,4 व 19 प्रमुख है ।
बुवाई का समय ?
उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में सिंचित दशा में गेहूं की बोवनी का उपयुक्त समय नवम्बर का प्रथम सप्ताह है ।
लेकिन उत्तर पूर्वी भागों में मध्य नवम्बर तक गेहूं की बोवनी की जा सकती है ।
देर से बोने के लिए उत्तर पश्चिमी मैदानों में 25 दिसम्बर के बाद तथा उत्तर पूर्वी मैदानों में 15 दिसम्बर के बाद गेहूं की बुआई करने से उपज में भारी हानि होने की संभावना बनी रहती है । इसी प्रकार बारानी क्षेत्रों में अक्टूम्बर के अंतिम सप्ताह से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक बुआई करना उत्तम रहता है । यदि भूमि की ऊपरी सतह में संरक्षित नमी प्रचुर मात्रा में हो तो गेहूं की बुआई 15 नवम्बर तक कर सकते है ।
बीज की मात्रा ?
सिंचित क्षेत्रों में समय से बुआई करने के लिए 100 कि.ग्रा. बीज पर्याप्त होता है लेकिन सिंचित क्षेत्रों में देरी से बुआई करने के लिए 125 कि.ग्रा. बीज की आवश्यकता पड़ती है , लवणीय एवं क्षारीय मृदाओं के लिए बीज की दर 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखनी चाहिए।
बीज का उपचार ?
2 किलोग्राम बीज को 2 ग्राम थाइम या 250 ग्राम मैंकोजेब से उपचारित करना चाहिए। इसके उपरांत दीमक नियंत्रण के लिए क्लोरोपाईरीफोस की 4 मिलीलीटर की मात्रा से तथा अंत में जैव उर्वरक एजोटोबेक्टर व पी.एस.बी. कल्चर के 3-3 पैकेट से 1 हेक्टेयर में प्रयोग होने वाले सम्पूर्ण बीज को उपचारित करने के बाद बीज को छाया में सुखाकर बुआई करनी चाहिए ।
बुआई की विधि ?
बुआई हमेशा सीडड्रिल से करनी चाहिए इससे बीज की गहराई ओर पंक्तियों की दूरी नियंत्रित रहती है ओर जमाव अच्छा होता है। विभिन्न परिस्थितियों में बोने हेतु फर्टि-सीडड्रिल(बीज एवं उर्वरक एक साथ बोने हेतु) , जीरो टिल ड्रिल (शून्य कर्षण में बुआई हेतु) , फर्ब ड्रिल (फ़र्ब बुआई हेतु) इत्यादि मशीनों का प्रचलन बढ़ रहा है ।
इसी प्रकार फसल अवशेष के बिना साफ किए हुए अगली फसल के बीज बोने के लिए रोटरी- टिल ड्रिल मशीन भी उपयोग में लाई जा रही है ।सामान्यतः गेंहू को 15 से 23 सेंटीमीटर की दूरी पर पंक्तियों में बोया जाता है पंक्तियों की दूरी मिट्टी की दशा सिंचाई की उपलब्धता तथा बोने के समय पर निर्भर करती है ।
सिंचित एवं समय से बोने हेतु पंक्तियों की दूरी 23 सेंटीमीटर रखनी चाहिए । सामान्य दशाओं में गेहूं को लगभग 5 सेंटीमीटर तक गहरा बोना चाहिए।समय से सिंचित दशा में लगभग 125 किलोग्राम नाइट्रोजन , 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 से 60 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है।
विलम्ब से बुआई की अवस्था में तथा कम पानी की उपलब्धता वाले क्षेत्रों में समय से बुआई की अवस्था में लगभग 20 से 40 किलोग्राम पोटाश की अधिक आवश्यकता होती है । बारानी क्षेत्रों में समय से बुवाई करने पर 40 से 50 किलोग्राम नाइट्रोजन तथा 20 से 30 कीलोग्राम फास्फोरस तथा 25 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है ।
असिंचित अवस्था में उर्वरकों को कूड़ों में बीजों से 2 से 3 सेंटीमीटर गहरा डालना चाहिए तथा बालियां आने से पहले यदि पानी बरस जाए तो 20 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन का छिड़काव करना चाहिए ।
सिंचित दशाओ में नाइट्रोजन व पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा का आधा प्रथम सिंचाई के बाद तथा बाकी बचा हुआ आधा द्वित्तीय सिंचाई के बाद छिड़क देना चाहिए । बुवाई के 3 से 4 हफ्ते पहले 25 से 30 टन अच्छी तरह से सड़ी-गली गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिट्टी में अवश्य मिलाना चाहिए।
सिचाई कैसे करें ?
- प्रथम सिचाई शीर्ष में जड़ जम जाए ओर फसल 20-25 दिन की हो जाये तब करें ।
- दूसरी सिंचाई जब फसल 45-50 दिन की हो जाये और कल्ले बनने लगे जाए तब करना चाहिए ।
- तीसरी सिंचाई गाँठ बनते समय , फसल के 65-70 दिन की होने के बाद करें ।
- चौथी सिंचाई बालियाँ निकलते समय 80 से 90 दिन बाद करे ।
- पांचवी सिंचाई 100 से 110 दिन बाद जब फसल कच्ची (दूधिया अवस्था में हो) तब करें ।
- अंतिम सिंचाई दाना पकते समय जब फसल 115 से 120 दिन की होने पर करनी चाहिए ।
यदि सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता कम हो तथा चार सिंचाई ही दे सकते हो तो शीर्ष जड़ बनते समय , गाँठ बनते समय , बालियाँ निकलते समय और दाना पकते समय ही करनी चाहिए ।
फसल की बुवाई के एक या 2 दिन पश्चात तक पेंडिमेथालिन खरपतवारनाशक की 2.50 लीटर मात्रा 500 लीटर पानी में गोल बनाकर समान रूप से छिड़काव कर देना चाहिए ।
यदि खेत में जंगली जड़ का प्रकोप अधिक हो तो आईसोप्रोटूरोन या मेटॉक्सिरान खरपतवारनाशक की 1 किलोग्राम मात्रा को 500 लीटर पानी में गोल बनाकर छिड़काव कर दें । इसके उपरांत फसल जब 30 से 35 दिन की हो जाये तो 2 ,4डी की 750 ग्राम मात्रा को 600 से 700 लीटर पानी में गोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिए । भूमि की तैयारी करते समय 20 से 25 किलोग्राम एंडोसल्फान भुरक देना चाहिए ।
यदि दीमक का प्रकोप खड़ी फसल में हो तो क्लोरीपाईरीफॉस की 4 लीटर प्रति हेक्टेयर मात्रा सिंचाई के साथ दे देनी चाहिए । रस चूसने वाली कीटों से नियंत्रण पाने के लिए इकालक्स की 1लीटर मात्रा का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए ।
झुलसा एवं पत्ती धब्बा , कंडवा , रोली रोग व मोल्या धब्बा के लिए मेंकोजेब 2 किलोग्राम , रोली रोग के लिए गन्धक का चूर्ण 25 किलोग्राम या 2 किलोग्राम मेन्कोजेब । कण्डुले के लिए बीज का फफूंदनाशक जैसे थीरम या विटावैक्स ।
मोल्या रोग के लिए कार्बोफ़्यूरोन 3 प्रतिशत रसायन या ईयर कोकल । टुन्डू रोग के लिए बीज को नमक के 20 प्रतिशत से उपचारित कर बुवाई करनी चाहिए । चूहों के नियंत्रण के लिए एल्युमिनियम फास्फाइड या राटाफीन इत्यादि गोलियों का प्रयोग करना चाहिए ।
कटाई कब करे ?
जब दाने में 15 से 20 प्रतिशत नमी हो तो कटाई का उचित समय होता है । कटाई के पश्चात फसल को 3 से 4 दिन सुखाना चाहिए तथा मंडाई करके अनाज में जब 8 से 10 प्रतिशत नमी रह जाये तो भंडारण कर सकते हो ।
अच्छा उत्पादन पाने के लिए यह एक वैज्ञानिक तरीका है अगर आपको हमारी यह तकनीक अच्छी लगी हो तो प्ले स्टोर पर जाकर हमारी ऐप्लिकेशन को 5★★★★★ देकर अपने मन की बात सबको बताएं ।