भारत देश मे ग्वार का शाब्दिक अर्थ गऊ आहार होता है अर्थात प्राचीन काल में इस फसल की उपयोगिता चारा मात्र में ही थी, परन्तु वर्तमान में बदली परिस्थितियों में यह एक अतिमहत्वपूर्ण औद्योगिक फसल बन गई है । ग्वार के दानों से निकलने वाले गोंद के कारण इसकी खेती बीजोत्पादन के लिए करना आर्थिक रूप से ज्यादा फायदेमंद हो सकता है। ग्वार राजस्थान के पश्चिम प्रदेश की अतिमहत्वपूर्ण फसल है।
समय:- मई से जुलाई माह में उपयुक्त माना जाता है ।
खेत की तैयारी
ग्वार की फसल लगभग सभी तरह की भूमि में ली जा सकती है परन्तु क्षारीय तथा जिस भूमि पर पानी ठहरता हो इसके लिए उपयुक्त नहीं है।
ग्वार की निम्नलिखित किस्में हैं
- आर.जी.सी. 936 : यह शाखित व जल्दी पकने वाली किस्म है l यह असिंचित (बारानी) क्षेत्र के लिए उपयुक्त किस्म है l
- आर.जी.सी. 986 : यह अशाखित व मध्यम पकने वाली किस्म है जो सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयोगी है l
- आर.जी.सी. 1002 : यह शाखित व जल्दी पकने वाली किस्म है l यह असिंचित व सिंचित दोनों परिस्तिथियों के लिए उपयुक्त किस्म है l
- आर.जी.सी. 1003 : यह शाखित व जल्दी पकने वाली किस्म है जो असिंचित क्षेत्र के लिए उपयुक्त है।
- आर.जी.सी. 1066 : इस किस्म के पौधे शाखाओं रहित होते है । पौधे की ऊँचाई 60 – 90 सेमी. होती है । इस किस्म में फलियाँ जमीन से 2-3 सेमी. ऊपर से ही लगने लग जाती है । यह एक जल्दी पकने वाली (85 -90 दिन) किस्म है । यह किस्म खरीफ व जायद दोनों ही परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है l
- एच.जी. 365 : यह शाखित व जल्दी पकने वाली किस्म है जो हरियाणा व राजस्थान के लिए उपयुक्त है l
- एच.जी. 563 : यह शाखित एवं जल्दी पकने वाली किस्म है जो की ग्वार उगाने वाले सभी क्षेत्रोँ के लिए उपयुक्त हैl
- एच.जी. 2-20 : यह शाखित एवं जल्दी पकने वाली किस्म है जो असिंचित व सिंचित दोनों परिस्तिथियों के लिए उपयुक्त है l इसकी खेती जायद ऋतु में भी की जा सकती हैl
- आर.जी.सी. 1031 : इस किस्म के पौधे भी अधिक लम्बाई वाले (74 – 108 सेमी.) व अधिक शाखाओं वाले होते है । यह देर से पकने वाली (110 – 114 दिन) किस्म है l
- आर.जी.सी. 1017 : इस किस्म के पौधे छोटे (55-60 सेमी.) व अधिक शाखाओं वाले होते हैं । पौधे की पत्तियां किनारों पर अधिक कटी होती है ।यह किस्म 90 -100 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है ।
- आर.जी.सी. 1038 : इस किस्म के पौधे मध्यम ऊंचाई 60-75 सेमी. व शाखाओं युक्त होती है । यह किस्म 95 – 100 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है व खरीफ व जायद दोनों ही परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है l
- आर.जी.सी. 197 : यह बिना शाखाओं वाली किस्म है । इसके पौधे की लम्बाई 90 से 120 सेमी. होती है । यह किस्म 100 से 120 दिन में पक कर तैयार हो जाती है ।
- आर.जी.एम. 112 : यह किस्म बैक्टीरियल ब्लाइट व जड़ गलन रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है तथा लगभग 95 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है l
बीज दर
ग्वार की अकेली फसल हेतु 12 से 15 किलो किस्म का बीज प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई करें। ग्वार की बुवाई कतार या पंक्ति में करें। कतार से कतार की दूरी 30 से 45 से.मी. रखें तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 से.मी. रखें।
जल प्रबंधन
आमतौर पर ग्वार की खेती वर्षा आधारित शुष्क व अर्ध शुष्क क्षेत्रों में की जाती है l लेकिन यदि सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है तो फसल को पानी की कमी होने पर सिंचाई अवश्य करनी चाहिये
कटाई
जल्दी पकने वाली किस्में लगभग 90 दिन में पक जाती हैं जबकि अन्य किस्में 110 से 125 दिन में पक जाती हैं । सामान्यतः जब पौधे की पत्तियाँ सूखकर गिरने लगे तथा फलियाँ भी सूखकर भूरे रंग की होने लगे, तब फसल की कटाई कर देनी चाहिए।