मिर्ची की खेती करने का मुख्य समय फरवरी- जुलाई तक का श्रेष्ठ माना जाता है इस समय में मिर्ची की खेती करके अधिक उत्पादन कमाया जा सकता है मिर्च की उन्नत खेती करने के लिए हमारी विधि को पूरा जरूर पढ़ें ।
भारत देश मे मिर्च एक नकदी फसल है। इसकी व्यवसायिक खेती करके अधिक लाभ कमाया जा सकता है। यह हमारे भोजन का प्रमुख अंग है। स्वास्थ्य की दृष्टि से मिर्च में विटामिन ए व सी पाये जाते हैं एवं कुछ लवण भी होते हैं। मिर्च को अचार, मसालों और सब्जी के रुप में भी काम में लिया जाता है। भारत में लगभग 7,92000 हेक्टेयर में इसकी खेती की जाती है, जिससे 12, 23000 टन मिर्च (Chilli) का उत्पादन होता है|
मुख्य किस्में:-
पूसा ज्वाला :-
इसके फल लंबे एवं तीखे तथा फसल शीघ्र तैयार होने वाली है। प्रति हैक्टर 15 से 20 क्विंटल मिर्च (सूखी) प्राप्त होती है।
कल्याणपुर चमन :-
यह संकर किस्म है। इसकी फलियाँ लाला लंबी और तीखी होती है। इसकी पैदावार एक हैक्टेयर में 25 से 30 क्विंटल (सूखी) होती है।
कल्याणपुर चमत्कार :-
यह संकर किस्म है। इसके फल लाल और तीखे होती हैं।
कल्याणपुर -1 :-
यह किस्म 215 दिन में तैयार हो जाती है तथा 19 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त हो जाती है।
कल्याणपुर – 2 :-
यह किस्म 210 दिन में तैयार होती है तथा इसकी उपज क्षमता प्रति हेक्टेयर 15 क्विंटल है।
सिंदूर :-
यह कसिम 180 दिन में तैयार होती है तथा इसकी उपज क्षमता प्रति हेक्टर 13.50 क्विंटल है।
आन्ध्र ज्योति :-
यह किस्म पूरे भारत में उगाई जाती है। इस किस्म का उपज क्षमता प्रति हैक्टेयर 18 क्विंटल है।
भाग्य लक्ष्मी :-
यह किस्म सिंचित एवं असिंचित दोनों क्षेत्रों में उगायी जाती है। असिंचित क्षेत्र में 10-15 क्विंटल एवं सिंचित क्षेत्रों में 18 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त हो जाती है।
जे-218 :-
यह संकर किस्म है। इसकी उपज 15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त हो जाती है।
पंजाब लाल :–
यह एक बहुवार्षीय किस्म है। यह मोजैक वायरस, कूकर्वित मोजैक वायरस के लिए प्रतिरोधी है इसकी उपज क्षमता 47 क्विंटल/हे. है।
पूसा सदाबहार :–
यह एक बारह मासी किस्म है जिनमें एक गुच्छे में 6-22 फल लगते हैं इसमें साल में 2 से 3 फलन होता है उपज 150 से 200 दिन में तैयार होती है। उपज 35 क्विंटल/हे.।
अन्य मुख्य किस्में
सूर्य रेखा, जवाहर मिर्च- 218, एन.पी. – 46, ए. एम. डी. यू. -1. पंत सी. – 1, पंत सी. – 2, जे.सी.ए. – 154 (आचार के लिए) किरण एवं अपर्णा।
जलवायु
अच्छी वृद्धि तथा उपज के लिए उष्णीय और उप उष्णीय जलवायु की आवश्यकता होती है। अधिकांश किस्मिन के लिए 70 से. तापमान अनुकूल होता है। प्रतिकूल तापमान तथा जल की कमी से कलियाँ, पुष्प एवं फल गिर जाते हैं।
भूमि केसी हो
अच्छी जल निकासी वाली जीवांश युक्त दोमट भूमि सर्वोतम रहती है। असिंचित क्षेत्रों की काली मिट्टियाँ भी काफी उपज देती है। 3-4 बार जुताई करके खेत की तैयारी करें।
बुआई
बीजों के पहले नर्सरी में बोते हैं। शीतकालीन मौसम के लिए जून- जुलाई एवं ग्रीष्म मौसम के लिए दिसंबर एवं जनवरी में नर्सरी में बीज की बुआई करते हैं , नर्सरी की क्यारियों की तैयारी करके बीज को एक इंच की दूरी पर पंक्तियों में बोकर मिट्टी और खाद से ढंक देते हैं। फिर पूरी क्यारियां को खरपतवार से ढँक देना चाहिए। बीज को जमने के तुरंत बाद सायंकाल में खरपतवार को हटा देते हैं । बीज को एग्रोसन जी.एन. या थीरम या कैप्टान 2 ग्राम रसायन (दवा) प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर के बुआई करना चाहिए।
बीज की मात्रा
एक हेक्टर मिर्च के खेती के लिए 1.25 से 1.50 कि. ग्रा. बीज की आवश्यकता होती है।
रोपाई कैसे करें
पौधे 25 से 35 दिन बाद रोपने योग्य हो जाते हैं। 60 से.मी, 45 से.मी. xX 45 से.मी. एवं 45 X 30 से. मी. की दूरी पर क्रमश: शीतकालीन एवं ग्रीष्मकालीन मौसम में रोपना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक
250 – 300 क्विंटल/हे. गोबर या कम्पोस्ट, 100-110 किग्रा. नाइट्रोजन, 50 किग्रा. फास्फोरस एवं 60 किग्रा./हे. पोटाश की आवश्यकता होती है। कंपोस्ट, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा रोपाई के पहले खेत की तैयारी के समय तथा शेष नाइट्रोजन को दो बार में क्रमश: रोपाई के 40-50 एवं 80-120 दिन बाद देनी चाहिए।
सिंचाई एवं अन्य क्रियाएँ
शीतकालीन मौसम के मिर्च के खेती में सिंचाई की आवश्यकता कम होती है। सिंचाई की आवश्यकता पड़ने पर दो – तिहाई सिंचाई दिसंबर से फरवरी तक करनी पड़ती है। ग्रीष्म कालीन मौसम की खेती में 10 से 15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए। मिर्च की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए खेत को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए।
कटाई
शाक या सलाद के लिए प्रयोग की जानेवाली मिर्च को हरी अवस्था में ही पूर्ण विकसित हो जाने पर तोड़ लेते हैं। शुष्क मसालों के रूप में प्रयोग की जाने वाली मिर्चों को पूर्णत: परिपक्व हो जाने पर तोड़ते हैं।