Mung ki kheti kaise kare (मूँग की खेती कैसे करे)

बसन्त ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती कैसे करें ?

विगत वर्षों में मूंग की शीघ्र पकने वाली एवं उच्च तापमान संवेदनशील प्रजातियों के विकास से इसकी खेती का बसंत एवं ग्रीष्म ऋतु में कृषकों को न केवल बालों की अतिरिक्त उपज प्राप्त होती है बल्कि खेती की उर्वरता में भी वृद्धि होती है।

इसकी खेती भारत के उन सभी क्षेत्रों में की जा सकती है। जहां सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं। इसकी खेती आलू, गन्ना, सरसों एवं मटर के बाद वसंत ऋतु में और गेहूं, जौ, चना आदि के बाद ग्रीष्म ऋतु में सफलता पूर्वक की जा सकती है।

खेत की तैयारी:-

क्षारीय एवं अम्लीय भूमि को छोड़कर इसकी खेती सभी प्रकार की भूमियों में की जा सकती है। रबी फसलों की कटाई के बाद पलेवा के खेत भली भांति तैयार कर लें।

उन्नतशील प्रजातियां:-

बसंत ग्रीष्मकालीन मूंग की उन्नतशील प्रजातियों का विवरण सारणी 1 में दिया जा रहा है, उपयुक्त प्रजाति का चुनाव कर अधिक से अधिक लाभ उठायें।

बुवाई का समय:-

बसंत कालीन मूंग की बुवाई मार्च के प्रथम पखवाड़े एवं ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई 10 अप्रैल तक अवश्य कर लें।

बीजोपचार:-

बुवाई के पहले बीजों को कवकनाशी दवाओं जैसे थीरम, कैप्टान या जीने से शोधन करें एवं राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें। कवकनाशी दवाओं से बीजों का शोधन बुआई के कम से कम दो दिन पहले अवश्य करें।

दो ग्राम रसायन प्रति किलोग्राम बीज का उपचार बुवाई के 10-12 घंटे पूर्व करें। इक पैकेट कल्चर (250 ग्राम) 10 किलोग्राम बीज के लिए पर्याप्त है।

बुवाई की विधि एवं बीज दर:-

बसंत कालीन मूंग की बुवाई कूड़े में 25-30 से.मी. तथा ग्रीष्मकालीन मूंग के लिए 20-25 से.मी. की दूरी पर बुवाई करें। बसंत कालीन मूंग के लिए 25-30 किलोग्राम तथा ग्रीष्मकालीन के लिए 30-35 किलोग्राम बीज/ हेक्टेयर की आवश्यकता है।

सहफसली:-

बसंत कालीन गन्ने के साथ मूंग की सहफसली खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है। गन्ने की 90 से.मी. पंक्तियों के बीच में मूंग की दो पंक्तियां 30 से.मी. की दूरी पर बुवाई करना चाहिये। इस प्रणाली में मूंग को अलग से उर्वरक देने की आवश्यकता नहीं है।

उर्वरकों का प्रयोग:-

18-20 किलोग्राम नाइट्रोजन और 45-50 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर प्राप्त होगा जिसकी आपूर्ति 100 किलोग्राम डाई अमोनियम फास्फेट से की जा सकती है।

सिंचाई:–

बसंतकालीन मूंग के लिए 2-4 सिंचाइयाँ पर्याप्त है। जो मृदा की किस्में एवं बुवाई के समय पर निर्भर करेगी। पहली सिंचाई 30-35 दिन बाद करनी चाहिये। बाद की सिंचाइयों को आवश्यकतानुसार, 15-20 दिन के अंतराल पर करें।

ग्रीष्म कालीन फसल लेने के लिये 3-5 सिंचाइयां देनी होगी। पहली सिंचाई 20-25 दिन बाद करनी चाहिये। बाद की सच्चाईया 10 15 दिन के अंतराल पर करें।

निकाई गुड़ाई:-

बुवाई के 20-25 दिन बाद खरपतवारों को निकाल देना चाहिये।

फसल सुरक्षा:-

थ्रिप्स व श्वेत मक्खी बसंतकालीन एवं ग्रीष्मकालीन मंग के प्रमुख कौन हैं। उनकी रोकथाम के लिए बुवाई के समय फोरेट अथवा कार्बोफ्यूरान कणिकाओं की 10 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से कूड़ों में प्रयोग करें।

यदि उनका प्रयोग नहीं किया हो तो कीटों का प्रकोप होता है। इस दशा में मोनोक्रोटोफास 0.04%, मेटासिस्टाक्स 0.05% अथवा डाइमिथोएट 0.03% का छिड़काव 1-1.25 मिली। लीटर दवा को प्रति लीटर पानी के घोल में आवश्यकतानुसार छिड़कें।

कटाई:-

फसल की जब 75-80 प्रतिशत फलियां पक जाये तो कटाई कर लेना चाहिए। विलम्ब से कटाई करने पर फलियां चिटक जाती है।

आर्थिक लाभ:-

उपरोक्त विधियों से खेती करने से बसंत कालीन मूंग से लगभग 800-7000 किलो हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है। और ग्रीष्मकालीन से 600-800 किलोग्राम उपज प्राप्त होती है एवं 2000-2500 रुपये शुद्ध लाभ प्राप्त होता है।

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