भारत देश मे काजू के कुल उत्पादन का 25% पैदा करता है काजू का नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है .काजू को ड्राई फ्रूट्स का राजा कहा जाए तो गलत नहीं होगा .काजू बहुत तेजी से बढ़ने वाला पेड़ है इसमे पौधारोपन के तीन साल बाद फूल आने लगते हैं और उसके दो महीने के भीतर पककर तैयार हो जाता है ।
काजू की उत्पत्ति ब्राजील से हुआ है.हालांकि आजकल इसकी खेती दुनिया के अधिकाश देशों में की जाती है. सामान्य तौर पर काजू का पेड़ 13 से 14 मीटर तक बढ़ता है. हालांकि काजू की बौना कल्टीवर प्रजाति जो 6 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ता है, जल्दी तैयार होने और ज्यादा उपज देने की वजह से बहुत फायदेमंद व्यावसायिक उत्पादकों के लिए साबित हो सकती है ।
काजू किस्में
काजू की कई उन्नत और हाइब्रिड या वर्णसंकर किस्मे उपलब्ध हैं ।अपने क्षेत्र के स्थानीय कृषि, बागबानी या वन विभाग से काजू की उपयुक्त किस्मों का चुनाव करें।
- Kaju वेनगुर्ला- 1
- एम वेनगुर्ला- 2
- वेनगुर्ला-3
- वेनगुर्ला-4
- वेनगुर्ला-5
- वृर्धाचलम-1
- वृर्धाचलम-2
- चिंतामणि-1
- एनआरसीसी-1
- एनआरसीसी-2
- उलाल-1
- उलाल-2
- उलाल-3
- उलाल-4
- यूएन-50
- वृद्धाचलम-3
- वीआआई(सीडब्लू) एचवन
- बीपीपी-1
- अक्षय(एच-7-6)
- अमृता(एच-1597)
- अन्घा(एच-8-1)
- अनाक्कयाम-1 (बीएलए-139)
- धना(एच 1608)
- धाराश्री(एच-3-17)
- बीपीपी-2
- बीपीपी-3
- बीपीपीपी-4
- बीपीपीपी-5
- बीपीपीपी-6
- बीपीपीपी-8
- (एच2/16).
खेती के लिए आवश्यक जलवायु
काजू मुख्यत: उष्णकटिबंधीय फसल है और उच्च तापमान में भी अच्छी तरह बढ़ता है। इसका नया या छोटा पौधा तेज ठंड या पाला के सामने बेहद संवेदनशील होता है। समुद्र तल से 750 मीटर की ऊंचाई तक काजू की खेती जा सकती है।
काजू की खेती के लिए आदर्श तापमान 20 से 35 डिग्री के बीच होता है.इसकी वृद्धि के लिए सालाना 1000 से 2000 मिमी की बारिश आदर्श मानी जाती है। अच्छी पैदावार के लिए काजू को तीन से चार महीने तक पूरी तरह शुष्क मौसम चाहिए। फूल आने और फल के विकसित होने के दौरान अगर तापमान 36 डिग्री सेंटीग्रेड के उपर रहा तो इससे पैदावार प्रभावित होती है।
भूमि
काजू की खेती कई तरह की मिट्टी में हो सकती है क्योंकि यह अलग-अलग प्रकार की मिट्टी में खुद को समायोजित कर लेती है और वो भी बिना पैदावार को प्रभावित किए। हालांकि काजू की खेती के लिए लाल बलुई दोमट (चिकनी बलुई मिट्टी ) मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है।
मैदानी इलाके के साथ-साथ 600 से 750 मीटर ऊंचाई वाले ढलवां पहाड़ी इलाके भी इसकी खेती के लिए अनुकूल है। काजू की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थ से भरपूर गहरी और अच्छी सूखी हुई मिट्टी चाहिए ।
व्यावसायिक उत्पादकों को काजू की खेती के लिए उर्वरता का पता लगाने के लिए मिट्टी की जांच करानी चाहिए । मिट्टी में किसी पोषक अथवा सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी दूर की जानी चाहिए। 5.0 से 6.5 तक के पीएच वाली बलुई मिट्टी काजू की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
जमीन की तैयारी और पौधारोपन
जमीन की अच्छी तरह जुताई कर उसे बराबर कर देना चाहिए और समान ऊंचाई में क्यारियां खोदनी चाहिए. मृत पेड़, घास-फूस और सूखी टहनियों को हटा दें. सामान्य पौधारोपन पद्धति में प्रति हेक्टेयर 200 पौधे और सघन घनत्व में प्रति हेक्टेयर 500 पौधे (5मीटर गुना 4 मीटर की दूरी) लगाए जाने चाहिए. एक ही क्षेत्र में उच्च घनत्व पौधारोपन में ज्यादा पौधे की वजह से ज्यादा पैदावार होती है ।
खेत की तैयारी और पौधों के बीच दूरी केसी रखनी चाहिए
सबसे पहले 45 सेमी गुना 45 सेमी गुना 45 सेमी की ऊंचाई, लंबाई और गहराई वाले गड्ढे खोदें और इन गड्ढों को 8 से 10 किलो के अपघटित (अच्छी तरह से घुला हुआ) फार्म यार्ड खाद और एक किलो नीम केक से मिली मिट्टी के मिश्रण से भर दें. यहां 7 से 8 मीटर की दूरी भी अपनाई जाती है.
काजू खेती के लिए सिंचाई के तरीके
आमतौर पर काजू की फसल वर्षा आधारित मजबूत फसल है । हालांकि, किसी भी फसल में वक्त पर सिंचाई से अच्छा उत्पादन होता है। पौधारोपन के शुरुआती एक दो साल में मिट्टी में अच्छी तरह से जड़ जमाने तक सिंचाई की जरूरत पड़ती है. फल के गिरने को रोकने के लिए सिंचाई का अगला चरण पल्लवन और फल लगने के दौरान चलाया जाता है।
काजू की खेती में अंतर फसल
काजू की खेती में अंतर फसल के द्वारा किसान अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं। अंतर फसल मिट्टी की ऊर्वरता को भी बढ़ाता है। ऐसा शुरुआती सालों में ही संभव है जब तक कि काजू के पौधे का छत्र कोने तक न पहुंच जाए और पूरी तरह छा न जाए. बरसात के मौसम में अंदर की जगह की अच्छी तरह जुताई कर देनी चाहिए और मूंगफली, दाल या फलियां या जौ-बाजरा या सामान्य रक्ताम्र (कोकुम) जैसी अंतर फसलों को लगाना चाहिए।
प्रशिक्षण और कटाई-छंटाई
काजू के पेड़ को अच्छी तरह से लगाने या स्थापित करने के लिए लिए ट्रेनिंग के साथ-साथ पेड़ की कटाई-छंटाई की जरूरत होती है। पेड़ के तने को एक मीटर तक विकसित करने के लिए नीचे वाली शाखाओं या टहनियों को हटा दें. जरूरत के हिसाब से सूखी और मृत टहनियों और शाखाओं को हटा देना चाहिए ।
जंगली घास-फूस पर निंयत्रण का तरीका
काजू के पौधे की अच्छी बढ़त और अच्छी फसल के लिए घास-फूस पर नियंत्रण करना बागबानी प्रबंधन के कार्य का ही एक हिस्सा है। ऊर्वरक और खाद की पहली मात्रा डालने से पहले घास-फूस को निकालने की पहली प्रक्रिया जरूर पूरी कर लें। घास-फूस निकालने की दूसरी प्रक्रिया मॉनसून के मौसम के बाद की जानी चाहिए। दूसरे तृणनाशक तरीकों में मल्चिंग यानी पलवार घास-फूस पर नियंत्रण करने का अगला तरीका है।
काजू उत्पादन की मात्रा
फसल की पैदावार कई तत्वों, जैसे कि बीज के प्रकार, पेड़ की उम्र, बागबानी प्रबंध के तौर-तरीके, पौधारोपन के तरीके, मिट्टी के प्रकार और जलवायु की स्थिति पर निर्भर करता है।
हालांकि कोई भी एक पेड़ से औसतन 8 से 10 किलो काजू के पैदावार की उम्मीद कर सकता है। हाइब्रिड या संकर और उच्च घनत्व वाले पौधारोपण की स्थिति में और भी ज्यादा पैदावार की संभावना होती है। एक पौधे से 10 किलोग्राम की फसल होती है तो 1000-1200 रु किलो के मूल्य के हिसाब से एक पौधे से एक बार में 12000 रुपये की फसल होगी ।